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मित्रता हों तो सुदामा और कृष्ण जैसी: शीघ्रता त्रिपाठ

मित्रता हों तो सुदामा और कृष्ण जैसी: शीघ्रता त्रिपाठ


आदित्य विश्वकर्मा 

उमरिया जिले नौरोज़ाबाद तहसील अंतर्गत ग्राम पठारी के ज्वाला मुखी मंदिर प्रांगण मे चल रही  श्रीमद भागवत कथा मे कथा वाचक  शीघ्रता त्रिपाठी ने आज श्रीमद भागवत के अंतिम दिवस मे सुदामा चरित्र की कथा उपस्थित श्रोताओ कों सुनाई।

उन्होंने बताया  की सुदामा जी के पास कृष्ण नाम का धन था संसार की दृष्टि में सुदामा गरीब तो थे लेकिन दरिद्र नहीं थे, पत्नी सुशीला के बार बार कहने पर सुदामा अपने मित्र कृष्ण से मिलने गए। जैसे ही सुदामा अपने बचपन के मित्र द्वारिकाधीश के महल के द्वार पहुंचते है तभी सुदामा ज़ी की जीर्णशीर्ण हालात देख कर द्वारपाल उन्हें रोक लेते है और उनसे पूछने लगते है की आपको किससे मिलना है तब सुदामा ज़ी ने जवाब दिया की मैं द्वारिका के राजा भगवान श्री कृष्ण से मिलने आया हूँ. आपके राजा मेरे बचपन के मित्र है सुदामा ज़ी ने द्वारपालों से कहा की आप जाकर मेरा सन्देश अपने राजा भगवान श्रीकृष्ण तक पहुँचा दो की उनके बचपन का मित्र उनसे मिलने आये है।

तब द्वारपलो ने भगवान श्री कृष्ण के पास जाकर सुदामा के बारे मे बताया. भगवान श्री कृष्ण ने जैसी ही सुदामा का नाम सुना तो वे सुदामा से मिलने के लिए दौड़ पड़े और उनको अपने गले से लगा लिया. और अपने साथ उनको महल के अंदर ले गए तथा उनको आसन में  बैठाकर सुदामा ज़ी की खूब खातिरदारी की.बाद मे भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा से पूछा की मेरी भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा है तब सुदामा ज़ी ने कहा की कुछ भी नहीं भेजा. तब भगवान श्री कृष्ण की नजर सुदामा जी की पोटली पर पड़ी  और उन्होंने सुदामा जी से चवाल की पोटली ले  ली. और एक-एक करके दो मुट्ठी चावल भगवान श्रीकृष्ण ने ग्रहण कर लिया।

भगवान श्री कृष्ण के चावल ग्रहण करते हैं सुदामा जी का गांव सुदामापुरी के नाम विख्यात हो जाता है और सुदामा जी की कुटिया महल के रूप में परिवर्तित हो जाता है भगवान श्री कृष्ण जैसे तीसरी मुट्ठी  चावल अपनी मुंह में डालते हैं तो रुकमणी जी  भगवान श्री कृष्ण का हाथ पकड़ लेती है और कहती हैं की सब कुछ सुदामा जी कों दे दोगे क्या. सुदामा जी भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर वापस अपने गांव आते हैं तो गांव में परिवर्तन देख कर हक्के बक्के रह जाते हैं और धीरे धीरे अपनी कुटिया की तरफ बढ़ते हैं   जैसे ही वे अपनी कुटिया के पास पहुंचते हैं  तो वहां पर कुटिया को  महल के रूप में परिवर्तित देख कर चौक जाते है और अपनी पत्नी सुशीला को रानी के रूप में देखते हैं तो तुरंत समझ जाते हैं की भगवान श्री कृष्ण ने कुछ ना देकर भी  सब कुछ दे दिया. 

कथावाचक शीघ्रता त्रिपाठी ने कहा की मित्रता हो तो  श्री कृष्ण और सुदामा जैसी. हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने  आज कथा सुदामा चरित्र का  रसास्वादन कर अपने आपको धन्य किया. श्रीमद् भागवत कथा का समापन कल दिनांक 5/3/2023 कों विशाल भंडारे के साथ  होगा.

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