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पढ़िए कहा हैं चौबीस खंभा माता मंदिर जहाँ महाअष्टमी पर कलेक्टर ने खुद अपने हाथों से माता को कराया मदिरा पान

पढ़िए कहा हैं चौबीस खंभा माता मंदिर जहाँ महाअष्टमी पर कलेक्टर ने खुद अपने हाथों से माता को कराया मदिरा पान
मध्यप्रदेश : शारदेय नवरात्र में महाष्टमी पर उज्जैन में आज नगर पूजन किया गया । परंपरा अनुसार माता मंदिर में की गई महाआरती में कलेक्टर शामिल हुए उज्जैन के चौबीस खम्बा माता मंदिर में आज सुबह से ही भक्तों का ताँता लगा हुआ है । यहाँ माता महामाया और महालाया की पूजा सम्राट विक्रमादित्य करते थे ।इसी परंपरा का निर्वाह जिलाधीश द्वारा किया जा रहा है । यहाँ उज्जैन पकलेक्टर आशीष सिंह ने माता को मदिरा का भोग लगाया तथा महा आरती की । नगर पूजा का प्रमुख कारण शहर में किसी भी प्रकार की कोई प्राकृतिक आपदा ना हो साथ ही सुख समृद्धि व खुशहाली बनी रहे ।
उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के समय से नगर पूजा की परम्परा चली आ रही है । आज इस परम्परा का निर्वाह उज्जैन के राजा अर्थात जिला कलेक्टर द्वारा किया जाता है । यहाँ नवरात्रि पर महाष्टमी के दिन वर्ष में एक बार जिला प्रशासन द्वारा नगर पूजा की जाती है । इस पूजा में लगभग 27 किलोमीटर तक मदिरा की धार लगाई जाती है ।जो की शहर के कई देवी मंदिरों में जाती है । इस महापूजा में जिला प्रशासन के साथ-साथ कई श्रद्धालु पैदल चलते है, और सुबह प्रारंभ होकर यह यात्रा शाम तक समाप्त होती है । यह यात्रा उज्जैन के प्रसिद्ध चौबीस खंबा माता मंदिर से प्रारंभ होकर नगर भ्रमण के बाद ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर पर शिखर ध्वज चढ़ाकर समाप्त होती है । इस यात्रा की खास बात यह होती है कि एक घड़े में मदिरा को भरा जाता है जिसमें नीचे छेद होता है जिससे पूरी यात्रा के दौरान सड़क मार्ग व देवी मंदिरों में मदिरा की धार बहाई जाती है । हर बार महापूजा में जिला कलेक्टर के साथ प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी व बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते है ।
यहाँ महालाया और महामाया दो देवियों की प्रतिमाएं द्वार के दोनों किनारों पर स्थापित है । सम्राट विक्रमादित्य भी इन देवियों की आराधना किया करते थे । यह मंदिर महाकालेश्वर मन्दिर के पास स्थित है । मंदिर मे 12वीं शताब्दी का एक शिलालेख लगा था, जिसमे लिखा था कि अनहीलपट्टन के राजा ने अवंतिका में व्यापार के लिए नागर व चतुर्वेदी व्यापारियों को यहाँ लाकर बसाया था । यहाँ नगर रक्षा के लिए चौबीस खम्बे लगे है । इसलिए इसे चौबीस खम्बा दरवाजा कहते है । प्राचीन समय में नवरात्र पर्व की अष्टमी पर जागीरदार, इस्तमुरार, जमींदारों द्वारा पूजन किया जाता था । आज भी यह परंपरा जारी है, जिसे कलेक्टर द्वारा निर्वहन किया जाता है । सम्राट विक्रमादित्य इन देवियों की आराधना किया करते थे । उन्हीं के समय से अष्टमी पर्व पर यहाँ शासकीय पूजन किए जाने की परंपरा चली आ रही है ।
बताया जाता है कि पूर्व के समय मे यह द्वार श्री महाकालेश्वर मंदिर जाने का मुख्य प्रवेश द्वार रहा होगा । जो कि उत्तर दिशा की और बना हुआ है । इस द्वार मे कुल 24 खंबे लगे हुए है । इसीलिए इस क्षेत्र को 24 खंबा माता मंदिर कहा जाता है । यह द्वार विशालकाय है यहाँ माता महामाया और महामाया देवी की नित्य पूजा अर्चना की जाती है । पूर्व में यहां पाड़ो की बलि दी जाती थी लेकिन यह प्रथा कब से थी इसका उल्लेख कही भी नहीं मिलता है वर्तमान मे यहां बलि प्रथा वर्जित है।
व्यूरो रिपोर्ट